Sunday 12 February 2012

फुटकर शेर

1-कोई भूला-बिसरा गीत याद आए तो क्या करे दोस्त,, कहते है सरे-शाम यादों के चिराग जलाया नहीं करते,,           2-दिल की बस्ती शाम से ही खुशगवार हो चली है दोस्त,,,ख्वाबों में आने का उसने वादा जो किया है,,                   3-वो वादों का हसीन मौसम,,ये रातों में यू तडफना,,वो आँखों के हसीन सपने,,और ये इश्क की बेताबिया,,           4-संभल जा मयकशी तेरी जान लेकर छोड़ेगी दोस्त,,गर खुदकुशी का शौक था तो प्यार क्यू किया,,                   5-ये रातों का जागना,ये बिस्तर पे करवटे बदलना "राजेश",,मैंने कहा था ना दिल-ए-नादान प्यार मत कर,,

Friday 10 February 2012

जब लगा के भूल जाऊँ वो गली वो आंगना,,तेरी ही आवाज़ लगी,,नहीं-नहीं ऐसा नहीं,,

फाँसी की सजा! देर क्यों!

..........देश में फाँसी की सजा पर काफी बहस छिड़ी हुई है,,फाँसी की सजा पाये कैदियों को सरकारी दामाद और ना जाने क्या-क्या कहा जा रहा है,,,गणतंत्र दिवस से अच्छा क्या अवसर होगा इस पर विचार व्यक्त करने के लिए,,,,मै तो कर रहा हूँ आप भी स्वस्थ चर्चा में शामिल हो सकते हैं,,,,,,,,,,,हमारे देश का क़ानून इस सुस्थापित विधिसूत्र पर आधारित है--"कि हजारों दोषी छूट जाए पर 1 निर्दोष को सजा ना हो" ये अवधारणा धीरे-धीरे हालत खराब करने लगी हमारी व्यवस्था की और दोषी छूटने लगे,,तब वर्ष 2001 के बाद से उच्चतम न्यायालय ने कहना शुरु किया कि किसी निर्दोष को सजा ना हो ये ठीक है पर दोषी को भी दंड मिलना समाज से भय दूर करने के लिए आवस्यक है,,तब परिस्थितिजन्य सबूतों के आधार पर दोषियों को सजा मिलने का दौर प्रारंभ हुआ,,,,,,,,,,पहले और दूसरे स्वतंत्रता संग्राम के बीच 1 ऐसी घटना हुई जिसने ईस्ट इंडिया कम्पनी की कलई खोल दी और ब्रिटेन की रानी ने देश की कमान सीधे अपने हाथ में ले ली,,समय था बंग-भंग,बंगाल विभाजन का बंगाल के 1 सूबे के शासक राजा नंदकुमार ने बंग-भंग का विरोध किया था और इसी दौरान उनकी इंडिया के वाइसराय क्लाइव राईस से रंजिश हो गई,राईस ने राजा को झूठे हत्या के मामले में फँसा दिया,उस समय सुप्रीम कोर्ट कलकत्ता में हुआ करता था,सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अपील प्रीवी काउंसिल में होती थी जिसकी जुरी की मुखिया महारानी होती थी....राजा नंदकुमार को फाँसी की सजा हुई और सुप्रीम कोर्ट ने सजा बरकरार रखी तथा राजा को सजा के विरुद्ध अपील करने के लिए स्टे नहीं दिया गया,,उस समय सुप्रीम कोर्ट के जज थे ऐलिस इम्पे जो क्लाइव रईस के करीबी मित्र थे,,फिर भी अपील हुई,,,,राजा के वारिसो ने अपील जारी रखी,,प्रीवी काउंसिल ने राजा को बरी किया,राईस और इम्पे को बर्खाश्त किया गया,और ईस्ट इंडिया कम्पनी से महारानी ने शासन की बाग़-डोर छीन ली....किंतु अपील का फैसला आने के पहले राजा नंदकुमार को फाँसी दी जा चुकी थी,,वो दिन भारतीय ही नहीं पूरे विश्व के कानूनी इतिहास का काला दिन था,,,पर अब समय के साथ इस प्रक्रिया में तेजी आनी चाहिये,,,जय हिंद

लोकतंत्र के चार स्तंभ,एक पुनरविलोकन!

लोकतंत्र के तीन स्तंभ,,1-व्यवस्थापिका (संसद) 2-कार्यपालिका (रास्ट्रपति) 3-न्यायपालिका (न्यायालय  चौथा स्तंभ मानक-लोक (मीडिया),,,,समय-समय पर इन्होंने अपनी महत्ता बताई है,,कुछ रोचक और यादगार पल शेयर करते है,आपको याद हो तो आप भी बताये!        संघ की कार्यपालिक शक्ति रास्ट्रपति में निहित होगी,,वस्तुतः रास्ट्रपति मंत्रिमंडल की सलाह मानने के लिए बाध्य है,किंतु उच्च मान्यताये हमारे देश में सदैव बनी रही है,,यदि कोई बिल या प्रस्ताव रास्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाता है तो वह 1 बार उसे अपनी टीप लिख कर वापस भेज सकते है किंतु अगर वह बिल दुबारा भेजा गया तो वे स्वीकृति में हस्ताछर करने के लिए बाध्य है,,ऐसा हमारे देश में कभी नहीं हुआ कि कोई प्रस्ताव रास्ट्रपति ने लौटाया हो और वह वापस उन्हें भेजा गया हो,,जब रास्ट्रपति के.आर.नारायणन थे तो जजों की नियुक्ति का प्रस्ताव भेजा गया था किंतु उन्होंने यह कह कर लौटा दिया था कि इसमें आरक्छण का प्रावधान होना चाहिये,,हायर जुडिसरी में आरक्छण का उपबंध नहीं है फिर भी उक्त प्रस्ताव उन्हें वापस नहीं भेजा गया.........................संसद सर्वश्रेस्ठ व स्वतंत्र अपने अधिकार छेत्र में--जब सोमनाथ चटर्जी लोकसभा अध्यक्छ थे तब कई सांसदों को पैसा लेकर प्रश्न पूछे जाने के वीडियो प्रसारित होने पर सांसदों को अयोग्य घोसित कर दिया था,,संसद उच्चतम न्यायालय गए,,जहा सुनवाई के दौरान लोकसभा अध्य्क्छ को हाजिर होने हेतु नोटिस जारी किया,,किंतु वे अपने विशेषाधिकारों का उपयोग कर कोर्ट नहीं गए,,तब न्यायालय ने उन्हें बिना सुने निर्यण पारित किया और उनके निर्णय में हस्तछेप करने से इनकार किया,,,,,,,,,न्यायपालिका--एमर्जेंसी के दौरान नागरिकों के अधिकार संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार निलंबित रहते हैं,,किंतु सर्वोच्च न्यायालय ने विधि की व्याख्या करने के अधिकारों का उपयोग करते हुए इस प्रावधान को"केशवानन्द भारती" के केस में असंवैधानिक घोसित किया,,और कहा कि प्रत्येक नागरिक को यह जानने का अधिकार है कि उसे क्यों बंद किया जा रहा है,,,,,लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रुप में प्रभास जोशी,कन्हैया लाल नंदन,खुशवंत सिंह में से सिर्फ़ खुशवंत हैं,,,,पत्रकारिता अपने आदर्श और उच्च प्रतिमान खो चुकी है पैड न्यूज ने इस स्तंभ की साख पर बट्टा लगा दिया है,,किंतु सब कुछ कभी खत्म नहीं होता,,अब भी कुछ ऐसे पत्रकार है जिन्होने अपनी जान पर खेल कर इस स्तंभ के ढहते ढाँचे को गिरने से बचा रखा है,,हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू प्रेस परिषद के अध्यक्छ नियुक्त हुए है,,जिनसे देश को भारी अपेक्छाये है कि वे जनता(लोक) की आवाज़ को मृत होने से बचायेंगे,,,,जय हिंद-जय भारत.

कथनी-करनी////जो आया दिल में लिख दिया!

काँग्रेस बी.जे.पी. में अन्तर--1-काँग्रेस का कोई नेता पैसा लेते रंगे हाथ नहीं पकड़ा गया,बी.जे.पी.-बंगारू लक्ष्मण,दिलीप सिंह जूदेव,जया जेटली 2-काँग्रेस पिछड़ों को उनका हक दिलाने का प्रयास कर रही है,,बी.जे.पी.-धर्म के आधार पर लोगो को भड़का रही है,देश में फूट डाल रही है,3-बी.जे.पी. शासित ज्यादातर राज्यों में लोगो को बोलने की आजादी नहीं है,,इसलिए वहा का कुछ पता नही चलता,छत्तीसगृह में ई.टी.वी. पर प्रतिबंध,एम.पी.में झूठे मुकदमे,,और भ्रस्टाचार चरम पर ऐसे पैसा खा रहे हैं जैसे दुबारा मौका ही नहीं मिलेगा,,4-वाजपेयी की सरकार में  सैनिकों के ताबूत तक की खरीदी में घोटाले हुए पर सी.बी.आई.ने मामला तक दर्ज नहीं किया,,काँग्रेस शासन में यदि घोटाले हुए तो 1 भी मामला दबाया नहीं गया,,मनमोहन सरकार ने सूचना का अधिकार अधिनियम पारित कर लोगो को घोटाले उजागर करने की शक्ति दी,,तभी जनता ने उन्हें दुबारा चुना,,,,,,,,,,,,5-यदि काँग्रेस में कोई तानाशाही होती तो सिंह किंग ना होते,,परिवार वाद नहीं यथार्थवाद है,,जिसमें योग्यता होगी वो आगे आयेगा,.पहले भी जनता ने विदेशी मूल का मुद्दा नकार दिया है,लेकिन काँग्रेस की कमी निकालने के अलावा इनके पास कोई मुद्दा नहीं है है,,मुद्दा विहीन मुर्दा पार्टी है बी.जे.पी.,,,,,,,,,,,,,,,बी.जे.पी. में ख़ुद विरोध करने की शक्ति तो है नहीं इसलिए अन्ना,रामदेव,स्वामी(जो ब्लैकमेलिंग का पुराना उस्ताद है) को आगे करके उन्हें धन बल से पोषित करती है,जो विपक्ष की भूमिका सही तरीके से ना निभा पाये,जनता उन्हें वोट देकर क्यों अपना वोट बेकार करे,,,,,जागो वोटर जागो! 

फुटकर शेर!

1-आज तुम मुझको यू ही निगाहों से गिरा दो लेकिन,,ये जो दीवानगी के लम्हे हैं याद आयेंगे बहुत,,    2-   वैसे तो कोई लफ्ज ना थे जुबा पे दिल के अशआर लिए,,आती गई तेरी याद जैसे कोई अश्क़ो का तूफान लिए,,3- जब भी कोई कड़वी बात याद आती है,एक तल्ख सुबह जब आकर जगाती है,,वैसे तो मयकशी की आदत नहीं,,पर आँख में उतरी खुमारी,दिल के छालों तक आती है,,4- मै यू ही नहीं कहता के रातों को नींद नहीं आती दोस्त,,,वो आने को जो कह गया होता तो फिर बात और ,,5- -तडफती है कोई आह किसी सितमगर के लिए,,निकलती है ग़ज़ल दिल से कोई राह लिए,,6-ये सच है कि ग़ालिब सा कलाम अब कहाँ,,पर मयकशी के मारे हम भी कम नहीं,,.7- शाम के चिरागो ने खूब समझाया,,रात ने भी कितना बहलाया,,ये धड़कनों के गीत बज़ते रहे,,ये उंगलिया यू ही थिरकती रही,,8- कुछ भी कहूँ अल्फाज़ो में मेरे बस वो ही चली आती है,,कौन कहता है कि शाम मेरी गमो में डूबी आती है,,9-ये मयकशी के किस्से कुछ और हसीन होते जाना,,तुम जो साथ होती तो मय से क्या गरज थी,,10-जब मै कभी ख़ुद को ये समझाऊ के तू मेरा नहीं,,मुझ में कोई चीख उठा है,नहीं ऐसा नहीं,,