Friday 3 June 2022
बचपन के दिन भी क्या सुहाने थे
ऐसे तो वो बचपन के दिन भी क्या सुहाने थे, बस एक हम थे वो थे और निर्दोष तराने थे, जवानी में दिल की लगी ने कही का न छोडा, यू ही बस ऐसे दिन आने और जाने थे, दिल्लगी का सफर जा रहा था दिल के ही तराने थे, पर वो दिन भी बस मौसम की तरह जाने थे, कटता जा रहा था मौसम का सफर बस उनके सहारे, हो चली थी बस ज़िंदगी की शाम कुछ अंधेरे कुछ उजाले थे, वक्त ने बदला कुछ ऐसा मिज़ाज़ बेदिली हुई कायम, फिर बस वो भी न रहे जिनके हम सहारे थे, एक दूर अंधेरे में कुछ बेनाम से पत्थरो पे लिखा है इक नाम,, बस जलते है दिए कुछ गुमनाम से कहते है वो "मस्ताना"थे....
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