अन्धेरी ऐसी ही इक रात थी वो, मै था और बस तन्हाई थी वो, शमाँ जली थी फिर से रात भर,मेरे हाल पे तमाशाई थी वो, यादों के धुंधले साये मचल रहे थे,दिल पर मक़्तल सी छाई थी वो, रोज़ कहती दिल की बातें बहकी सी,गर बढ़ाया हाथ तो हवा सी जाती थी वो, फिर भी हसरते-विशाल में जी रहा था,एक बिछड़ा हुआ साया थी वो, दिल की धड़कन बेलौस मचलती थी,रातों को करता रहा ग़ज़ल सी "मस्ताना" वो,
Saturday 9 June 2012
Sunday 3 June 2012
बस जलते है दिए कुछ गुमनाम से कहते है वो "मस्ताना"थे...
ऐसे तो वो बचपन के दिन भी क्या सुहाने थे, बस एक हम थे वो थे और निर्दोष तराने थे, जवानी में दिल की लगी ने कही का न छोडा, यू ही बस ऐसे दिन आने और जाने थे, दिल्लगी का सफर जा रहा था दिल के ही तराने थे, पर वो दिन भी बस मौसम की तरह जाने थे, कटता जा रहा था मौसम का सफर बस उनके सहारे, हो चली थी बस ज़िंदगी की शाम कुछ अंधेरे कुछ उजाले थे, वक्त ने बदला कुछ ऐसा मिज़ाज़ बेदिली हुई कायम, फिर बस वो भी न रहे जिनके हम सहारे थे, एक दूर अंधेरे में कुछ बेनाम से पत्थरो पे लिखा है इक नाम,, बस जलते है दिए कुछ गुमनाम से कहते है वो "मस्ताना"थे....
Saturday 2 June 2012
न एक पल भी आराम मिला "मस्ताना" तडफता ही रहा,
शाम से ही हुआ फिर से ये दिल दीवाना क्यू है, रात का मंज़र है मुसल्सल ये आवारगी क्यू है, यू तो कई बरस बीते तेरे दर पे निगाह फेरें हुए, आज फिर से तेरे कदमो की आहट का बहाना क्यू है, फिर गई वो मई की रातें जो तडफाती कम सताती ज्यादा थी, ये गर्म हवाओं के झोंके उन दिनों की याद दिलाते क्यू है,
के फिर वही तमन्ना है बारिश में भीगने की तुम संग, जब तुमको याद नही तो तुम्हारी यादें सताती क्यू है, न एक पल भी आराम मिला "मस्ताना" तडफता ही रहा, इक बेवफ़ा के इश्क में दिल का ये सुकून जाता क्यू है..
Friday 1 June 2012
अब तो ये उम्र गुजरेगी कुछ इस तरह से "मस्ताना"
- हमने सोचा न था के दिल यू भी घबरायेगा रातों में,कशिश होगी दिल में और कुछ कह भी न पायेगा, वो दिन भी मुहब्बत के याद आयेंगे फिर से,साँस रुकेगी भी नब्ज चलेगी भी, आँखों में सुर्ख धारिया मय की सी बिखरेगी हरसू,पलक मचलेगी यू ही बेखबर आँखें छलकेगी भी, बहकेंगे कदम चलने को उसकी गली फिर से,अक़्ल समझायेगी यू ही दिल मानेगा भी नही, अब तो ये उम्र गुजरेगी कुछ इस तरह से "मस्ताना", चराग-ए-दिल जलायेगा यू ही ढलती रातों को रोयेगा भी..
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