Thursday 12 February 2015

Rajesh Sharma

इतिहास से सबक ले या फिर इतिहास के पन्नो में दफन होने को तैयार रहे-भाग 1-इतिहास की शुरुआत होती है गाँधी के अफ़्रीका से लौटने पर,बंबई (जिसे मुंबई बना डाला है) बंदरगाह पर भारत के इतिहास की अद्द्वितीय भीड़ ये देखने को जुटी की कैसे एक साधारण मानव ने अफ़्रीका में ब्रिटनी मूल की सरकार के रंगभेद/नस्लभेद के जहर में ढेर सारा पानी उड़ेल दिया,जनता में उस अवतार के प्रति भारी श्रद्धा की वो भारत में भी अँगरेजों की चूले हिला देगा,वस्तुत: ऐसा हुआ भी गांधी की अहिंसा ने अँगरेजी हुकूमत के पैर उखाड़ दिए,गाँधी की पार्टी का नाम था,काँग्रेस और आजादी के लिए देश के नाम पर लठिया खाने वाली पार्टी और उनके खिलाफ लडने वाले भी अमूनन उसी प्रस्ठभूमि से, आजादी की लडाई और नेहरू उसके प्रतीक् नेहरू के नाम पर जनता उन्हें वोट देती रही,संगठन बनाने की ओर  कभी सोचना ही नही पडा फिर शास्त्रीजी की सादगी इन्दिरा की मर्दानगी के नाम पर वोट मिलते रहे जो इन्दिरा की शहादत और राजीव की कुर्बानी के नाम पर भी ठकाठक पडते रहे,धीरे-धीरे वो पीढीया खत्म होती गई और हालत यहा तक आ पहुचे कि जिस पार्टी के झन्डे से पूरा हिंदुस्तान लहलहाता था उसे देश की राजधानी में ही साफ़ होना पडा..                                                                             भाग 2-जिस राज्य से काँग्रेस एक बार गई वहा फिर वापस नही आई-पश्चिम बंगाल में कम्म्युनिस्टो का शासन याद करे वहा लगातार कम्म्युनिस्ट जीतते रहे और उसी दौरान ममता बैनर्जी युवा काँग्रेस की प्रदेशाध्यक्ष बनी और कम्म्युनिस्टो से उन्ही की भाषा में लडना प्रारंभ किया लेकिन बंगाल के स्थापित नेतृत्व को वो पसंद नही आया और उन्हें आखिरकार नई पार्टी बनानी पडी परिणाम सामने है आज बहुत ही कम लोगो को पता होगा कि तत्त्कालीन प्रदेशाध्यक्ष सोमेन मित्र कहा है,गुजरात मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ इसी कडी के दूसरे सूबे है,गुजरात में दंगों के खिलाफ तीस्ता सीतलवाड ने जितनी लड़ाई लडी क्या उतनी पूरी काँग्रेस लड़ सकी,व्यापम घोटाले में मध्यप्रदेश के सी.एम.की पत्‍‌नी साधना सिंह के तार सीधे-सीधे जुडे पाये गए लेकिन क्या हम उस लड़ाई को लड़ पये या वो लड़ाई मृत क्यो और किसके इशारे पर हुई,काँग्रेस सदा ये सोच के बैठी रही की जब लोग सत्तारूढ़ दल को पसंद नही करेंगे तो हम ही तो वो है जिन्हें जनता फिर से चुनेगी,उत्तरप्रदेश में भी हम यही सोच कर बैठे थे जनता ने सपा/बसपा को चुन दिया,पार्टी के नेता सत्ता से बाहर जाने को अपना "रिलैक्स अवर" मानते रहे न वो जनता के लिये लडे और न कार्यकर्ताओं के लिए,जिन्होंने लडा वो हमारे विकल्प बन गए,हालिया रोहतक की घटना इसका प्रमाण है कि मुद्दे और जनता के संजीदा मसले पर भी हम महज एक स्टेटमेंट देते है सड़कों पर नही उतरते..                                                                                         भाग 3-काँग्रेस सेवादल नाम का एक संगठन था जिसे संघ के समानांतर खडा किया गया था जो गाव-गाव शहर शहर कैम्प लगाकर देशभक्ति कौमी एकता के गुर सिखाता था,जिसके "वंदेमातरम" गीत से काँग्रेस की सभाये/बैठकें प्रारंभ होती थी ,कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करता था लेकिन उस संगठन को दरी बिछाने वाला संगठन बना दिया गया और वो विलुप्त होने की कगार पर है,राजीवजी ने 21वी सदी का सपना देखा और कम्प्यूटर दिया पर हम स्वयम्‌ उसकी महत्ता को समझ नही सके और शोशल मीडिया में पार्टी का नाम लेवा नही रहा,पार्टी ने कई टीमें बनाई जो समाचारों लेखो के स्रोत इकठ्ठे करने का माध्यम बन गई मौलिकता से दूर्-दूर् का नाता नही रहा,पार्टी ने कभी इस बात का सर्वे नही किया कि शोशल मीडिया पर वो कौन लोग थे जिन्होंने बिना किसी लालच के सिर्फ़ झूठ का प्रतिकार किया और अनगिनत गालिया खाए,वेतनभोगी संसथाये सुंदर काम कर सकती है लेकिन मौलिकता और भावनाये नही परस सकती,इन सभी बातों पर उन्हें गौर करना है जिन्हें पार्टी का नेतृत्व करना है,वर्ना इतिहास के पन्नो पर स्वर्ण अक्षरो में लिखा होगा कि "एक पार्टी थी जिसने देश को आज़ाद कराया" हो सकता है मेरी बातों से हमारे नेता सहमत न हो या आप में से बहुत से लोग सहमत न हो पर दिल पे हाथ रख के धड़कन से पूछियेगा तो आपका भी वही हाल होगा जो इस समय मेरा है,ये  किसी हारे हुए सिपाही के शब्द नही अपितु ये लगातार लडते रहने का जज्बा लिए हुए एक उत्साहहीन सिपाही के है,और अंत में "अनकैडराईज शोशल मीडिया टीम" के जंग लडने के जज़्बे को सलाम और दो लाइनें- "पडा जो वक्त गुलिश्ता पे तो ख़ूँ से सीचा है मैंने और जब बात चली है बहारो की तो कहते है तेरा काम नही" जय हिंद-जय काँग्रेस