बुजर्गो की पहचान बुद्धि है उम्र नहीं,उसी तरह जवानी की पहचान उम्र नहीं कुछ और है,हम उसे युवक नहीं कहते जिसकी उम्र १८ से २५ वर्ष हो,जो सर से पैर तक फैशन में सजा हुआ विलासिता का दास,जरूरतों का दास खर्च के गधे को बाबा कहने को तैयार हो,वह न जवान है न बूढा, वह युवक है ?जिससे न जाति का उपचार न देश का भला हो सकता है,हम जवान या युवक उसे कहते है जो बीस का हो का हो या चार बीस का पर हो हिम्मत का धनी, दिल का मर्द,आन पर मर जाय पर किसी का एहसान न ले,सिर कटा दे पर झुकाये नहीं,आफतो से घबराये नहीं बल्कि उनमे कूद पड़े,नदी के किनारे नाव के इंतजार में खड़ा न हो बल्कि उछलती लहरो पर सवार हो जाए,कठिनाईया ना हो तो उनकी सृस्टि करे,जो सन्तोष को संतोष समझे विश्राम को विष का प्याला,जिसे संघर्ष में विजय का आनंद प्राप्त हो,परिश्रम में सफलता या उल्लास,युवक वह है जो अपने ऊपर असीम विश्वास रखता हो,जो अकेला चना होकर भी भाड़ फोड़ डालने की हिम्मत रखे,जो उपासना करे तो शक्ति की,आराधना करे तो स्फूर्ति की,जिनकी नाड़ियो में रक्त की जगह आकांछा हो,ह्रदय में प्राण की जगह अशांति,जो रूढ़ियों का शत्रु और परिपाटी का नाशक हो,जो पाखण्ड पीछे हाथ धोकर पङ जाए और जब तक नामोनिशान न मिटा दे चैन न ले।
युवक वह है जिस पर सदैव कोई न कोई धुन सवार रहती है, अगर नमाज़ पढने की बारी आये तो ऐसा कि अल्लाह के रूबरू हो जाय,पूजा करे तो जैसे ईश्वर खोज ही डाले,सोने पर आये तो दोपहर दिन की खबर ली,खेलने पर आये तो रात आँखों में कट गई,किसी से दोस्ती हुई तो प्राण तक निछावर कर दिए,दुश्मनी हुई तो खून के प्यासे हो गए,युवक जो काम करता है वह उत्साह से उमंग से,दिलोजान से,बेदिली से दुवधे में पडकर वह कोई काम नहीं करता, युवक वह है जिसे कल की चिंता नहीं सताती जो आज में मगन रहता है,कल को कल पर छोडता है,जिसके जीवन में सभी दिन आज है,कल का कही अस्तित्व ही नहीं,जिसके जीवन का सार है,उमंग!उमंग!उमंग!
हिंदी साहित्य की क्लास में अचानक प्रोफ़ेसर श्री गंगा प्रसाद द्विवेदीजी ने छात्रों से पूछा बताओ युवा कौन?कई उत्तर आये हम साहित्य के विद्यार्थी न थे सो घर पे लिख के उन्हें दिखाया और उन्होंने प्यार से चपत लगा कर कहा "तुम्हे साहित्य लेकर पढना था" और आख़िरी लाईन जोड़ कर उमंग से पूरा कर दिया।।