Tuesday 8 October 2019

विश्व के 124 देशो के कलाकारो ने मिलकर पूरी मानव जाति को गांधी का संदेश उनकी 150वी जन्मवर्षगाँठ पर दिया,भारत सरकार के विदेश मंत्रालय की प्रस्तुति।और हम अपने ही  देश मे क्या करते है? गांधी विचार की खूबसूरती इसमे है कि हमारे लोगो के बीच ही कही गोडसे जीता है और हम उससे भी नफरत नही करते बल्कि उसकी विचारधारा को मानने वाले लोगो को गांधी के सामने नमन करते देख पुलिकत होते है कि धीरे धीरे ही सही पर गोडसे मर रहा है,व्हाट्सएप्प फेसबुक यूनिवर्सिटी से उपजी शिक्षा के लाभार्थियों को अपने गुरुओं से पूछना जरूर चाहिये की "आप गुरू कातरा मारे,चेलो को सीख देवे" (कातर एक पक्षी का नाम है) की वो ऐसा क्यों कर रहे है,गांधी भगवान नही इंसान थे जब आलोचना से भगवान न बच सके तो फिर इंसान तो इंसान ही है,मैंने अपने चंद फेसबुक मित्रो को दबी ज़बान में सरकार के डर से गोडसे के पक्ष में और गांधी के खिलाफ न लिखने के कारण बताते हुए देखा,उनसे अनुरोध की वो जरूर लिखे क्योकि बगैर बुराई के अच्छाई का अतित्व किस काम का,गांधीवाद के अमर रहने के लिये उस पर पत्थर फेकना आवश्यक है क्योंकि गांधी कीचड़ नही है गांधी हिना है उस पर जितने प्रहार होंगे वो उतनी ही खुशबू देगा,जब मैंने पहली बार गोडसे को शहीद बताते  और गांधी हत्या को "वध" बताते देखा था तो सन्न रह गया था और कानों में खून सा जम गया था क्योंकि हमने गांधी की आलोचना और उनके हत्यारे का महिमा मंडन इतने खुले रूप में पहली बार देखा था,फिर इस बात को स्वीकार करना पड़ा की हा ऐसे विचार देश मे सदा से गुप्त रूप में मौजूद रहे है,जबसे गांधी की आलोचना शोसल मीडिया पर सुनने को मिली तो गांधी को पढ़ने का समझने का और मौका मिला और लगा कि अब तक तो हम बगैर गांधी के बारे में कुछ जाने ही उनका सम्मान करते थे,जैसे जैसे उन्हें पढ़ते गए वो और विराट होते गए उनकी विशालता मोबाइल में झुक कर देखने की नही किताबो में डेस्क में बैठ कर पढने की है,गांधी के बारे में शोसल मीडिया में फैलाये गए झूठो का पर्दा परत दर परत खुलता गया और अब ऐसा लगता है कि अगर खुली आलोचना की अभिव्यक्ति का अवसर सदा से उपलब्ध होता तो शायद अब तक गोडसे विचार का समूल नाश हो गया होता,"गांधी वध क्यो" किताब को बैन करना भी शायद गलत साबित हुआ क्योंकि वो महज़ एक मुल्ज़िम का "मुलजिम बयान" के  अतिरिक्त और कुछ नही है,आप जघन्य से जघन्य अपराध के अपराधी का मुल्ज़िम बयान पढ़ेंगे तो आपको लगेगा की इसने तो कुछ किया ही नही है बड़ा गलत हुआ इसके साथ,अमूनन हत्या जैसे अपराधों में  200 से 300 प्रश्न न्यायालय पूछती है कि आपके विरुद्ध ये साक्ष्य आई है आपका क्या कहना है और उसका अगर हां नही के उत्तर के बजाय 1 या 2 लाइन का उत्तर दिया जाय तो हर हत्यारे पर 1 किताब लिखी जा सकती है,गोडसे के मुल्ज़िम बयान में शायद जज ने उससे यह भी पूछा था कि उसने हत्या के पूर्व अपना "खतना" क्यो कराया था? उत्तर था "नही मालूम" लेकिन इसका उत्तर तत्तकालीन सभी नागरिकों को पता था क्योंकि उस समय गांधी की हत्या के बाद तुरंत ये अफवाह फैली थी कि किसी मुस्लिम ने गांधी की हत्या कर दी और तुरंत ही सरकार ने इस बारे में वस्तुस्थिति बताते हुए विधिवत प्रेसनोट भी जारी किया था और उसके बाद पूरे देश मे जहा कही गोडसे के समर्थन में 1 शब्द निकलता था वह तीसरा गाल उसी का होता था,गांधी की हत्या ने एक दूसरे के खून के प्यासे हिन्दू मुसलमानो को स्तब्ध और एक कर दिया कि अब अगर हम लड़े तो हमे एक करने कौन आएगा,अंग्रेज 1857 के गदर के बाद यह समझ गए थे कि अगर "ये दोनों कौम " 1 रही तो हम ज्यादा दिन शासन नही कर पाएंगे (उस समय अंग्रेजी सेना के सैनिकों के बीच यह अफवाह फैल गई थी कि वो कारतूस जिन्हें बंदूको में भरने के पहले दांतो से छीलना पड़ता है उनमें सुअर और गाय की चर्बी का इस्तेमाल किया गया है,और ऐसा हिन्दू मुस्लिमों को अपमानित और धर्म भ्रष्ट करने के लिये किया गया है और बड़ी संख्या में पूरे देश मे  हिन्दू मुस्लिम सैनिको ने विद्रोह कर दिया था और दिल्ली में बहादुर शाह जफर को बादशाह घोसित कर दिया था) और फिर विश्व प्रसिद्ध "डिवाइड एन्ड रूल" नीति का जन्म हुआ जिसे गांधी ने समझा और अंग्रेजो के खिलाफ एकता का विचार देकर सारे देश को एक साथ खड़ा कर दिया,आज अंग्रेजो की उसी नीति का सफल प्रयोग जारी है जिसे समझना और जानना जरूरी है,हालांकि इन सबमे आज़ादी के बाद के सफेदपोश नेता भी कम दोषी नही है जिन्होंने गांधी को आचरण के बजाय टोपी तक और 2 अक्टूबर तक सीमित कर दिया उन्होंने गांधी को भगवान बना कर उन्हें आलोचना से दूर कर दिया और धीरे धीरे गांधी वैचारिक रूप से दूर होते गए और गांधी विचार क्षीण होता गया ,काश वो वैचारिक लड़ाई निरंतर चलती रहती,बहरहाल भारत सरकार द्वारा बापू के जन्मदिन को पूरे सप्ताह मनाने के आव्हान पर कोटिशः साधुवाद 🙏

Tuesday 4 June 2019

ऐसे तो वो बचपन के दिन भी क्या सुहाने थे, बस एक हम थे वो थे और निर्दोष तराने थे, जवानी में दिल की लगी ने कही का न छोडा, यू ही बस ऐसे दिन आने और जाने थे, दिल्लगी का सफर जा रहा था दिल के ही तराने थे, पर वो दिन भी बस मौसम की तरह जाने थे, कटता जा रहा था मौसम का सफर बस उनके सहारे, हो चली थी बस ज़िंदगी की शाम कुछ अंधेरे कुछ उजाले थे, वक्त ने बदला कुछ ऐसा मिज़ाज़ बेदिली हुई कायम, फिर बस वो भी न रहे जिनके हम सहारे थे, एक दूर अंधेरे में कुछ बेनाम से पत्थरो पे लिखा है इक नाम,, बस जलते है दिए कुछ गुमनाम से कहते है वो "मस्ताना"थे....

Wednesday 27 February 2019

राम जन्मभूमि आन्दोलन के बाद जब भाजपा राज्य सरकारे भंग हुई और नए चुनाव हुए तब श्री दिगविजय सिंह कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष थे और उन्होंने प्रदेश में सर्वाधिक प्रसिद्द नारा दिया "रामभक्तो जागो-चंदे का हिसाब मांगो" पूरे प्रदेश में उन्होंने कांग्रेस संगठन को पुनर्जीवित किया जिसके तारतम्य में वो पंचायती राज्य सम्मलेन में चचाई (शहडोल-अनुपपुर)आये जहा उनसे पहली मुलाक़ात और उन्हें सुनने का अवसर प्राप्त हुआ,उनकी  मेहनत और गुटनिरपेक्ष राजनीति से कांग्रेस सत्ता में वापस आई .
अपने मुख्यमंत्रीत्व काल में पहले 5 वर्ष १९९३-१९९८ तक उन्होंने शानदार काम किये ,पूरे देश में सबसे पहले पंचायती राज नवीन व्यवस्था को लागू कर पंचायतो के चुनाव कराये और इस पर उन्हें पूरे देश में ही नहीं अंतरास्ट्रीय स्तर पर भी  ख्याति प्राप्त हुयी और यूएन में पुरूस्कार से सम्मानित किया,पंचायती राज के साथ साथ जो पद सृजित हुए उन पर निगाह डाली जाए तो पंचायत सचिव,स्वास्थ्य कर्मी,मलेरिया लिंक वर्कर,शिक्षा गारंटी योजना गुरूजी,शिक्षा कर्मी,आदि और इनसे लाखो बेरोजगार युवको को रोजगार मिला ,भले ही मानदेय वक्ती तौर पर कम रहा हो पर आज वही कर्मी अवश्य ही दिगविजय को याद करते होंगे,सरकारी संसथाओ को जवाबदेह बनाने के लिए लोक सूचना अधिकार बनाया जो कालान्तर में वर्त्तमान सूचना के अधिकार अधिनियम की नीव बना तो स्थानीय निकाय के जनप्रतिनिधियों पर जनता की नकेल डाली "खाली-कुर्सी-भरी कुर्सी" के चुनाव कराकर और उस चुनाव का पहला प्रयोग अनूपपुर नगरपंचायत अध्यक्ष के लिए ही हुआ जिसमे वरिष्ठ कांग्रेस नेता ही अपदस्थ हुए,अच्छे कार्य करने के कारण जनता ने उन्हें फिर से चुना और उनका दूसरा कार्यकाल जैसे ही प्रारम्भ हुआ अचानक  २००० में नए राज्य छग के गठन होने से प्रदेश में बिजली संकट शुरू हो गया हालांकि मध्यप्रदेश में मौजूदा संयंत्रो की क्षमता बढाने के कार्य प्रारम्भ हुए लेकिन तब तक तक देर हो चुकी थी,वर्ष १९९८ से २००३ तक के कार्यकाल में केंद्र में एनडीए सरकार थी और केंद्र सरकार ने गैर एनडीए राज्य सरकारो को लगभग ३० प्रतिशत तक कम केन्द्रीय आर्थिक अनुदान दिया जिसने कृषि,खनिज  और वनोपज पर आधारित राज्य की कमर तोड़ दी (2 वरिष्ठ अर्थशास्त्रियो द्वारा की गई  सर्वे रिपोर्ट जो संक्षिप्त रूप से श्री सुनील जैन द्वारा बिजनेश स्टैण्डर्ड के "वोट वाजपेयी" १६/०२/२००४ लेख में प्रकाशित की गई है) और जिसे कांग्रेस का व्यक्तिवादी कमजोर संगठन जनता तक नहीं पहुचा सका साथ ही उस समय केंद्र सरकार के विरुद्ध राज्य सरकारों द्वारा आन्दोलन या प्रदर्शन किये जाने की परम्परा भी नहीं थी  जिससे २००३ में भाजपा ने कांग्रेस को प्रदेश की सत्ता से बेदखल कर दिया,दिगविजय सिंहजी  ने साम्प्रदायिक ताकतों के खिलाफ सदा कडा रूख अपनाया था और सिमी तथा बजरंग दल दोनों को प्रतिबंधित किया था जब  बजरंग दल को प्रतिबंधित किया,तभी का दिलचस्प वाकया याद आता है ,बजरंग दल पर प्रतिबन्ध से नाराज विहिप ने मुख्यमंत्री निवास का घेराव करने चढ़ाई की तो भोपाल प्रवेश करने  वाली सभी सड़को पर भंडारों का सरकारी आयोजन किया गया और सीएम आवास पहुचने साधू संतो के पैर धोकर उन्हें वास्तविक स्थिति से परिचय कराया और विहिप का आन्दोलन वही थम गया,सत्ताच्युत होने के बाद  दिगविजय सिंह ने 10 साल तक कोई पद न लेने और चुनाव न लड़ने की सौगंध खाई जिसे अक्षरशः पूरा किया लेकिन राजनीति में वो विरोधियो पर अपने कटीले प्रहारों से सदा खबरों में बने रहे ,कोई भी राजनैतिक कार्यकर्ता दिगविजय सिंहजी  की कार्यक्षमता पर रस्क कर सकता है जितने सक्रीय वो आज है शायद ही कोई प्रौढ़ नेता इतना जीवंत हो.दिग्विजय सिंहजी जब बोलते है तो वो ख़बर बन जाती है,वो जो भी बात कहते है मय सबूत के कहते है,जब उन्होंने ने कहा कि "मेरी हेमंत करकरेजी से मौत के थोडा पहले बात हुई थी" तो मीडिया/विपक्ष और उनकी ही पार्टी ने उनका खूब मजाक उड़ाया था लेकिन जब उन्होंने काल डिटेल पेश की तो सबकी बोलती बंद हो गई,जब ठाकरे, बिहारी भाइयों पर कहर बरसा रहे थे उन्हें मुंबई जाने पर पीटा जां रहा था,लालू यादव के छठ पूजा को नही होने दिया तब दिग्गी ने ठाकरे परिवार के बिहार से माइग्रेट होकर आने का तथ्य उजागर किया तो ठाकरे ने उन्हें अँगरेजों का मुखबिर होने की बात कही तब दिग्गी ने उन्हें चुनौती देते हुए कहा कि "मै सबूत पेश कर रहा हूँ यदि ठाकरे में दम है तो मेरे खिलाफ सबूत बताये" और उन्होंने ठाकरे परिवार के वंशज द्वारा लिखी गई वंशावली(किताब) पेश की ठाकरे बन्धु आज तक दुबारा उनके खिलाफ बोलने की हिम्मत नही जुटा पाये,अरविंद केजरीवाल के खिलाफ सवालों की सूची जारी की और कहा कि "ये सोनियाजी के पास रास्ट्रीय सुरक्षा परिषद का सदस्य बनाने आए थे न बनाने पर आज विरोध कर रहे है" जवाब आज तक नदारद है और केजरीवाल यहा वहा भागते फिरे,मोदी के द्वारा इमेज बिल्डिंग के लिए हर वर्ष 305 करोड़ रुपये अमेरिकी एजेन्सी एपको द्वारा खर्च किए जाने की पोल भी खोली,व्यापम घोटाले पर सुप्रीम कोर्ट तक सबसे लम्बी  लड़ाई लड़ी.
वर्ष २०१८ में जैसे फिर इतिहास खुद को दोहराने जा रहा था जो सच भी हुआ ,दिगविजय सिंह जी की नर्मदा यात्रा ने मृत कांग्रेस में जैसे जान फूंक दी,उन्हें समन्वय समिति का अध्यक्ष बनाया जिसके तहत उन्होंने प्रदेश भर में कार्यकर्ताओं और नेताओं को समन्वयित किया  और कांग्रेस फिर से सत्ता में आई अगर सच कहू तो वर्त्तमान सरकार में दिगविजय सिंह का अक्श साफ़ साफ़ दिखाई देता है,उनके जन्मदिन पर उन्हें  हार्दिक शुभकामनाये और अपेक्षा की वो कांग्रेस नेताओं के दिमाग में सत्ता का नशा इतना न चढने दे की उन्हें आम कार्यकर्ता दिखना ही बंद हो जाए,एक आम कार्यकर्ता आपके जैसे व्यक्तित्व को क्या उपहार दे सकता है वो तो आपसे सदा मांगेगा ही की आप सदा सत्ता और आम  कार्यकर्ताओं में समन्वय स्थापित करते रहे, राजनीति में सत्य बोलने वाले सबकी  नजर से उतरे रहते है और झूट्ठे लोग आँख का तारा, आप रास्ट्रीय राजनीति में मध्यप्रदेश का नाम रोशन कर रहे है ,हमे आप  पर गर्व है..."दिग्गी नही दिलेर है एम.पी.का शेर है"
(तसवीर २०१७ शहडोल लोकसभा उपचुनाव के समय हुए उनके कोतमा दौरे की है और एकमात्र यही तसवीर थी जिसमे मै वरिस्थ नेताओं के आशीर्वाद से शामिल रह पाया था )