विश्व के 124 देशो के कलाकारो ने मिलकर पूरी मानव जाति को गांधी का संदेश उनकी 150वी जन्मवर्षगाँठ पर दिया,भारत सरकार के विदेश मंत्रालय की प्रस्तुति।और हम अपने ही देश मे क्या करते है? गांधी विचार की खूबसूरती इसमे है कि हमारे लोगो के बीच ही कही गोडसे जीता है और हम उससे भी नफरत नही करते बल्कि उसकी विचारधारा को मानने वाले लोगो को गांधी के सामने नमन करते देख पुलिकत होते है कि धीरे धीरे ही सही पर गोडसे मर रहा है,व्हाट्सएप्प फेसबुक यूनिवर्सिटी से उपजी शिक्षा के लाभार्थियों को अपने गुरुओं से पूछना जरूर चाहिये की "आप गुरू कातरा मारे,चेलो को सीख देवे" (कातर एक पक्षी का नाम है) की वो ऐसा क्यों कर रहे है,गांधी भगवान नही इंसान थे जब आलोचना से भगवान न बच सके तो फिर इंसान तो इंसान ही है,मैंने अपने चंद फेसबुक मित्रो को दबी ज़बान में सरकार के डर से गोडसे के पक्ष में और गांधी के खिलाफ न लिखने के कारण बताते हुए देखा,उनसे अनुरोध की वो जरूर लिखे क्योकि बगैर बुराई के अच्छाई का अतित्व किस काम का,गांधीवाद के अमर रहने के लिये उस पर पत्थर फेकना आवश्यक है क्योंकि गांधी कीचड़ नही है गांधी हिना है उस पर जितने प्रहार होंगे वो उतनी ही खुशबू देगा,जब मैंने पहली बार गोडसे को शहीद बताते और गांधी हत्या को "वध" बताते देखा था तो सन्न रह गया था और कानों में खून सा जम गया था क्योंकि हमने गांधी की आलोचना और उनके हत्यारे का महिमा मंडन इतने खुले रूप में पहली बार देखा था,फिर इस बात को स्वीकार करना पड़ा की हा ऐसे विचार देश मे सदा से गुप्त रूप में मौजूद रहे है,जबसे गांधी की आलोचना शोसल मीडिया पर सुनने को मिली तो गांधी को पढ़ने का समझने का और मौका मिला और लगा कि अब तक तो हम बगैर गांधी के बारे में कुछ जाने ही उनका सम्मान करते थे,जैसे जैसे उन्हें पढ़ते गए वो और विराट होते गए उनकी विशालता मोबाइल में झुक कर देखने की नही किताबो में डेस्क में बैठ कर पढने की है,गांधी के बारे में शोसल मीडिया में फैलाये गए झूठो का पर्दा परत दर परत खुलता गया और अब ऐसा लगता है कि अगर खुली आलोचना की अभिव्यक्ति का अवसर सदा से उपलब्ध होता तो शायद अब तक गोडसे विचार का समूल नाश हो गया होता,"गांधी वध क्यो" किताब को बैन करना भी शायद गलत साबित हुआ क्योंकि वो महज़ एक मुल्ज़िम का "मुलजिम बयान" के अतिरिक्त और कुछ नही है,आप जघन्य से जघन्य अपराध के अपराधी का मुल्ज़िम बयान पढ़ेंगे तो आपको लगेगा की इसने तो कुछ किया ही नही है बड़ा गलत हुआ इसके साथ,अमूनन हत्या जैसे अपराधों में 200 से 300 प्रश्न न्यायालय पूछती है कि आपके विरुद्ध ये साक्ष्य आई है आपका क्या कहना है और उसका अगर हां नही के उत्तर के बजाय 1 या 2 लाइन का उत्तर दिया जाय तो हर हत्यारे पर 1 किताब लिखी जा सकती है,गोडसे के मुल्ज़िम बयान में शायद जज ने उससे यह भी पूछा था कि उसने हत्या के पूर्व अपना "खतना" क्यो कराया था? उत्तर था "नही मालूम" लेकिन इसका उत्तर तत्तकालीन सभी नागरिकों को पता था क्योंकि उस समय गांधी की हत्या के बाद तुरंत ये अफवाह फैली थी कि किसी मुस्लिम ने गांधी की हत्या कर दी और तुरंत ही सरकार ने इस बारे में वस्तुस्थिति बताते हुए विधिवत प्रेसनोट भी जारी किया था और उसके बाद पूरे देश मे जहा कही गोडसे के समर्थन में 1 शब्द निकलता था वह तीसरा गाल उसी का होता था,गांधी की हत्या ने एक दूसरे के खून के प्यासे हिन्दू मुसलमानो को स्तब्ध और एक कर दिया कि अब अगर हम लड़े तो हमे एक करने कौन आएगा,अंग्रेज 1857 के गदर के बाद यह समझ गए थे कि अगर "ये दोनों कौम " 1 रही तो हम ज्यादा दिन शासन नही कर पाएंगे (उस समय अंग्रेजी सेना के सैनिकों के बीच यह अफवाह फैल गई थी कि वो कारतूस जिन्हें बंदूको में भरने के पहले दांतो से छीलना पड़ता है उनमें सुअर और गाय की चर्बी का इस्तेमाल किया गया है,और ऐसा हिन्दू मुस्लिमों को अपमानित और धर्म भ्रष्ट करने के लिये किया गया है और बड़ी संख्या में पूरे देश मे हिन्दू मुस्लिम सैनिको ने विद्रोह कर दिया था और दिल्ली में बहादुर शाह जफर को बादशाह घोसित कर दिया था) और फिर विश्व प्रसिद्ध "डिवाइड एन्ड रूल" नीति का जन्म हुआ जिसे गांधी ने समझा और अंग्रेजो के खिलाफ एकता का विचार देकर सारे देश को एक साथ खड़ा कर दिया,आज अंग्रेजो की उसी नीति का सफल प्रयोग जारी है जिसे समझना और जानना जरूरी है,हालांकि इन सबमे आज़ादी के बाद के सफेदपोश नेता भी कम दोषी नही है जिन्होंने गांधी को आचरण के बजाय टोपी तक और 2 अक्टूबर तक सीमित कर दिया उन्होंने गांधी को भगवान बना कर उन्हें आलोचना से दूर कर दिया और धीरे धीरे गांधी वैचारिक रूप से दूर होते गए और गांधी विचार क्षीण होता गया ,काश वो वैचारिक लड़ाई निरंतर चलती रहती,बहरहाल भारत सरकार द्वारा बापू के जन्मदिन को पूरे सप्ताह मनाने के आव्हान पर कोटिशः साधुवाद 🙏
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