वक्त की भी अजब सी कहानी है समझो तो आँसू देखो तो पानी है,सितम ये ना है कि हम बेबस है दर्द ये है कि हाथों में कलम की रवानी है,हजारों साल से चली आ रही है ये दास्ताँ,कलम की जबानी फिर से सुनानी है,सुनते थे था सिकंदर इस जहां में ब्रूटस की धार फिर से दिखानी है,आज बेबस है "मस्ताना" मासूमो के रुख पर, देखेगा जहां इस किस्से को और यही बस आखिरी कहानी है..........राजेश मस्ताना
Monday 23 July 2012
Saturday 14 July 2012
बूँदों ने कहर ढा दिया
सावन की घटा ने समझा के बुझ जायेंगे शामो के चराग,यादों की गर्म चादर पे बूँदों ने कहर ढा दिया, वो बहती कश्ती पानी में इस दिल का मचलना याद आया, इठला के चलना याद आया उन नजरों का गिरना याद आया, वो आँगन के बहते धारे थे वो नदी किनारे सारे थे,वो साहिल पे गिरना याद आया हाथों का सहारा याद आया, फिर कहो ग़ज़ल मै क्या कहता जुम्बिश-ए-कलम से याद आया,बस ऐसी ही शामें-जुलाई थी "मस्ताना" कही पे खो आया.................................राजेश मस्ताना
Thursday 12 July 2012
मंज़िल-ए-"मस्ताना"
इन दूरियों ने भी ये क्या सितम ढाया है,जितना दूर् गए तुम उतना ही पास पाया है, जब भी लगा के पास कोई आया है,वो तुम न थी बस मेरा ही साया है, दिल की धड़कनों ने जब भी कभी तडपाया है,यु लगा के जैसे फिर से तुम्हे पाया है, ये ज़िन्दगी यु ही कट जाती तो भी कम न था,तेरी रहगुज़र ही बस मंज़िल-ए-"मस्ताना" है.
Wednesday 11 July 2012
ये उलझने........
ये उलझने फिर से आ चली है दिल के कोने में, यादों के साये भी दफना चुके थे हम, है वही सिलवटें फिर से रूह-सियाह में कैसे, अल्फाज़ो की रवानी को चाक कर चुके थे हम, वो सुलगती है फिर से बरसात की रातें कैसे, बारिश की बूँदों को तो झटक चुके थे हम, आज ये फिर आँखें हुई है नम क्यू इस तरह, दिल की राहो को जब "मस्ताना" बदल चुके थे हम,
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